इश्क नाजुक
इश्क नाजुक
उठ कर चल दिए दीवाने तेरे दर से
हबीब का दिल जरा भी ना पिघला
कसमें खाई थी यूं रुसवा ना होने की
शिद्दत से साथ जीनेे की और मरने की
सितमगर यू सितम कर कब पलट गया
देख रात केेेेेे अंधेरे को सूरज भी ढल गया
हवा इस कदर जोर की चली नफरतों की
इश्क था नाजुक सा दीया बस बुझ गया।