इश्क बस इश्क रहे
इश्क बस इश्क रहे
कुछ अज़ीज़ थे वो
पर, वक्त के कोहरे में धुंधले हुए।।
थोड़े गुब्बार और गुस्से से भरे थे,
पर अच्छे जरूर थे।।
कोई हीर -रांझा नहीं थे,
पर मोहब्बत सच्ची करते थे।।
जनाब रुठा ना करते थे,
मगर पता नहीं कब बेवफा हुए।
बेपनाह, बेइंतहा वफा का
यह बेहद मोड़ आया है,
अब उन यादों और लम्हों में सिर्फ धोखा बचा है,
इश्क बस इश्क रहे,
वह फरेब बने तो तकलीफ देता है ।।

