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Swapna Purohit

Abstract Drama Tragedy

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Swapna Purohit

Abstract Drama Tragedy

दोहराए पे

दोहराए पे

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अक्सर कुछ लोग हमें बस भूल ही जाते है। 

हम ठहरे बेवकूफ किस्म के, जो सोचते रहे

उन्हें याद कैसे हर रोज करे। 


सब ठीक ही कहते हैं, अक्सर धीरे धीरे वक्त और

दूरी महसूस होने लगती है


उन सब गह़रे रिश्तो में भी अब

अधूरा सा एहसास बचा है।

 

यादें हमने समेट रखी है ना ज़ाने क्यू

यादों में बसे लोग तो आजकल धुंदले हो रहे है।


क्या ये मोड़ है, क्यूँ दिल उतना ही दुखा है,

एक बार सवर गए थे आज़,

उन बचे हूए लोगों ने फिर से

दोहराए पे आकर रखा है। 


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