इस जहान के परे
इस जहान के परे
कल जब तुमने अपनी
जिंदगी का जहर उगला
तो मैंने सोचा,
तुम्हें कहीं दूर ले चलूँ
बहुत दूर... सबसे दूर..।
इतनी दूर कि आसमान की नजरें
भी तुम्हें देख न सके,
इतनी दूर कि तुम्हारे अतीत की
परझाई भी तुम्हें छू ना सके।
इतनी दूर कि
फिर मैंने सोचा कि
ये मैं क्या सोच रहा हूँ,
नही.. नही..।
तुम तो फूलों सी मृदूल हो
और मेरे रास्ते में ही कांटे हैं,
तुम सह नहीं पाओगी
इन कांटों की चुभन को।
तुम तो चांद सी शीतल
और मेरी मंजिल ही सूरज है।
तुम झेल नहीं पाओगी
सूरज की अगन को।
हां, अगर अंजाम के बावजूद भी
तुम मेरी निगाहों को अपने
गहने बनाना चाहती हो तो
बेशक पर जाने दो,
मैं अकेला ही चल पडूंगा
अपने जिंदगी के सफर पर।
वैसे भी अकेले चलना तो
मेरे रोजमर्रा का काम है।
मै अकेला ही चल पडूंगा
अपनी मंजिल की ओर
इस जहान के "परे"
सूरज की खोज में।
ये जानते हुए कि
वज्र का प्रहार निश्चित है।