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इंसांं भटकता जा रहा

इंसांं भटकता जा रहा

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इंसांं भटकता जा रहा,

इंसांं सिमटता जा रहा।

इस छल भरे संसार में,

इंसांं है छलता जा रहा।


इंसांं गिरता जा रहा,

इंसांं उठता जा रहा।

इन कागज़ों के मोह में,

इंसांं है बिकता जा रहा।


इंसांं चढ़ता जा रहा,

इंसांं धसता जा रहा।

धर्मों की खातिर यहाँ,

इंसांं है मरता जा रहा।


इंसांं संवरता जा रहा,

इंसांं बिगड़ता जा रहा।

इस दहेज रूपी दैत्य से,

इंसांं है बिखरता जा रहा।




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