इंसानियत गुमनाम
इंसानियत गुमनाम
अनजान है ये जगह, दुनिया हैं इसका नाम
कहीं होती है सुबह, कहीं होती है शाम
मुसाफिरों की ये ठिकाना है, पर सब के है कुछ काम
बस मेहनत करने वालों को जीत हैं, बाकी हैं बदनाम
पेड़, बगीचे, जीव-जंतु बहुत देखे है हम
पर इंसान तो कहीं नही और इंसानियत गुमनाम