अर्ज़ करता हूँ दिल के ज़ुबाँ से
अर्ज़ करता हूँ दिल के ज़ुबाँ से
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सोच में रहकर कभी मेरे हाथ ने
स्याही फैलाई कागज़ पे
लिखने लगे एक नई शायरी
अनोखे किस्सों की एक फनकारी
अर्ज़ करता हूँ मेरे दिल के ज़ुबां से
अल्फ़ाज़ मैं भरता हूँ तारीफ़ ए काबिल के
कुछ अलग सा हैं ये शेर मेरा
रुहानी और अलहदा इस संसार से
ज़हर के प्याले कभी पिये नहीं जाते
मायूसी में फैसले कभी लिए नहीं जाते
ग़म के ख़याल कभी जिये नहीं जाते
मदहोशी में सवाल कभी किये नहीं जाते
