इंसान और ज़िंदगी
इंसान और ज़िंदगी
ऐ इंसा ज़रा मुश्किल वक्त में मुस्कुरा कर तो देख,
मुश्किलें खत्म हो जाएगी,
जरा एक बार आज़मा कर तो देख,
ऐ इंसा ज़रा मुश्किल वक्त में मुस्कुरा कर तो देख।
क्या होती हैं खुशियां? क्या होते हैं गम के साए?
क्या होती हैं खुशियां? क्या होते हैं गम के साए?
ये यू तो होते कुछ नही,
बस बन कर रह जाते हैं जीवन की दो राहे,
ऐ इंसा क्या सोच रहा हैं,
अपनी ही कहीं बातों से क्यों परेशा हो रहा हैं,
आखिर क्यों करता है तु गम से आशिकी,
जरा सोच कर तो देख,
ऐ इंसा ज़रा खुद से आशिकी करके तो देख।
तेरी दिल्लगी कमाल की होती है
कहकशाँ सी खुशियों के पीछे
फिर क्यों भागता फिरता हैं?
दिल लगाना ही है तो खुद से लगा कर तो देख,
सच्ची खुशियां तेरे पास ही मिलेगी,
ऐ इंसा ज़रा अपने पास ढूंढ कर तो देख।
मायने भले ही रोज बदलते है जीने के तेरे,
मायने भले ही रोज बदलते है जीने के तेरे पर,
अपने ईमान को पर्व
त सा स्थिर बनकर तो देख,
देख तुझे दुनिया मिसाल देगी तेरी,
अपने हौसलों को बुलंदी की उद्दान देकर तो देख,
ऐ इंसा खुद को काबिल बनाकर कर तो देख।
भले ही रोज आती है मुश्किलें, ज़िंदगी में तेरी,
मुश्किलों से लडने का दूसरा नाम ही
तो ज़िंदगी होता है ना,
जरा मुश्किलों से आंख मिलाकर तो देख,
वो खुद व खुद खत्म हो जाएगी,
तू जरा सर उठाकर तो देख,
ऐ इंसा ज़रा मुश्किल वक्त में मुस्कुरा कर तो देख।
बेबाक होकर खुद से, ज़िंदगी जीकर तो देख,
तू खुद हसकर कहेगा,
मुश्किलों से डर कर हारजाने से अच्छा तो,
उनसे आंख मिलाकर लडने में मज़ा आता हैं,
तुम खुद से आज़मा कर तो देख,
ऐ इंसा ज़रा मुश्किल वक्त में मुस्कुरा कर तो देख,
तू ज़िंदगी में जीत जाएगा,
बस एक बार मुस्कुरा कर तो देख,
मुस्कुरा कर तो देख, मुस्कुरा कर तो देख।