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Rivaayat .

Romance

3  

Rivaayat .

Romance

इनायत

इनायत

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ज़िंदगी की हर याद को न जाने, 

किस कोने में संजो दिया।

न जाने कितनो को ढूंढ़ते ढूँढ़ते 

मैंने या।


उसका नाम ही मेरी आयत था 

उसका इंतज़ार मेरी रिवायत।

उस मेहजबीन की रौशनी में नजाने कब 

मैंने अपनी परछाई को खो दिया ।


दिन में राह देखते देखते 

रात में आंसूं बहा देते 

हर अधमरी रात में खुदा से 

बस एक नयी सेहर मांग लेते


रेत की गुड़िया होकर तूफ़ान को न्योता दिया,

अब बरसात में भीगना बाकी है।

पत्थर का टुकड़ा होकर बेहार से शर्त लगाई,

अब तैरना सीखना बाकी था।


खुद से ही लड़कर हार गयी, तो जाना 

सुकून तो अंदर ही मिलना है।

अल्हड दरिया को भी आखिरकार 

शांत समंदर ही बनना है।


तुम्हे ढूँढ़ते ढूँढ़ते खुद को खो देना 

गलती नहीं, नवाज़िश है।

जुदा कर, फिर राह मिला देना 

यही क़ुदरत की साज़िश है।


गुज़ारिश बस इतनी की तुम खुद को ढून्ढ लो 

खुदा को मनाना मेरी मेहनत है।

और अगर इस सफर में गुमशुदा भी हो गए 

तो भी, हर सांस.... हर समेटी याद... 

सिर्फ खुदा की रहमत है।


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