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Vishnu Saboo

Abstract Tragedy Classics

4.5  

Vishnu Saboo

Abstract Tragedy Classics

हर किसी को जल्दी है....

हर किसी को जल्दी है....

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मची है एक भगदड़ सी।

अगले से आगे जाना है।।

हर किसी को जल्दी है।

जाने कहाँ पे जाना है।।


कत्ल करना पड़े चाहे।

इंसानियत या इंसान का।।

सौदा करना पड़े चाहे।

धर्म या अपने ईमान का।।

बना के लाशो को सीढ़िया।

बस शिखर पे जाना है।।

हर किसी को जल्दी है....


गला घोंट के रिश्तों का।

खून बहा के अरमानों का।।

छीन के सपने लोगों के।

दिल दुखा के अपनो का।।

किसी भी कीमत पे बस।

अपना महल बनाना है।।

हर किसी को जल्दी है....


क्या करोगे बोलो तो।

इतना धन कमा कर ?

कितना साथ ले जाओगे।

कफन में जेब लगा कर ?

तलब तुम किये जाओगे ।

ऊपर वाले कि अदालत में।।

याद रखो तुम्हे भी।

उसको मुंह दिखाना है।।

हर किसी को जल्दी है....


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