होली मस्तमंलग
होली मस्तमंलग
बहती हवाओं की सायं सायं की आवाज़ में
धूल, मिट्टी से उठता हुआ धुंध जैसे खेलती प्राकृत होली हुड़दंग।
रबी फसल पक के तैयार अब, गा रहे किसान ख़ुशी के गीत
आम की मंजर, महुआ… की गंध सबको करता मस्तमलंग ।।
गली मोहल्लों में बजते ढ़ोल -तासे मिट जाता मन का भेद
होली के रंग में घुलता जैसे भंग , ख़ुशी में सब हो जातें संग।
बोल जोगिरा सररर सररररररर होली है …।।
