होली कथा
होली कथा
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विष्णु जी का भक्त प्रहलाद
करता था दिन-रात वो जाप
पिता थे राजा हिरण्यश्यप
जिसको खुद पे बड़ा था दंभ
चाहता था बेटा उसे पूजे
विष्णु का ना नाम जपे
प्रहलाद ने जब ना सुनी एक
हिरण्य का टूटा विवेक
कितने रास्ते फ़िर अपनाए
कि खुद का ही, पुत्र मर जाए
नहीं चला जब कोई जतन
याद तब उसको आई बहन
वरदान था ना जलने का जिसको
फिर क्या था, बोला उसको
होलिका ने अग्नि जलवाई
प्रहलाद को लेके उसमें समाई
खुद ही जल कर हो गई खाक
हंसते प्रकट हुए प्रहलाद
तब से होली हर साल मनाते
रंग लगा खुशियां बरसाते।