हंसी
हंसी
उम्मीदें धुंधला रही हैं
मन रह रहकर घबराता है
उसने कहा !
वो देखो नव अंकुर
प्रत्येक बीज, अथाह घुटन
और सन्नाटें को चीर कर ही
रोशनी की किरण देख पाता है
मैने कहा !
कहना क्या चाहती हो ?
यही कि
घबराहट, संघर्ष, नाउम्मीदी
ये सब भी जीने की निशानियां है !
अब तुमसे कोई कैसे जीते ?
केवल एक ही तरीका है
मेरी बात मान ली जाए
मैंंने कहा !
फिर वो बहुत देर हंसता रहा
उसने कुछ नहीं कहा !