हँसी और होठों की यह मुस्कान ने
हँसी और होठों की यह मुस्कान ने
उसे क्या मालूम कि किस पर क्या बिता
कौन कौन बस देख कर जिता मरता
वो रंग बहारों में आने जाने मात्र से
कितना दिल टूटा, टूट कर बिखर जाता।।
हँसी और होठों की यह मुस्कान ने
कब किस पर कैसे प्रहार करने छूटा
उसे क्या मालूम कौन टूटा कौन रूठा
बस बारिश के बूंदों को हैं भिगोता।।
धायल तन मन रतन को कर देता
बहरहाल वक्त को कितना खो देता
ये पता न होता है किसी हवाओं को
व इतना अलमस्त गगन में है खो देता।।
नाज़ुक सा दिल पर नयन वार कर देता
चिर कर यौवन का क्या हाल कर देता
क्या मालूम उसे कितना भूत प्यार का
कब किस पर झटके सवार कर देता।।
