हमारा समाज
हमारा समाज
जहां जात-धर्म की न बात हो
ऊंच-नीच का न हिसाब हो
ऐसा हमारा समाज हो।
जहां दया-धर्म भरमार हो
समता जिसका आधार हो
ऐसा हमारा समाज हो।
जहां प्रेम की बहती रसधार हो
हर किसी का हर किसी से प्यार हो
ऐसा हमारा समाज हो।
सत्य-अहिंसा जिसका अलंकार हो
जहां नफरत की बहती न बयार हो
ऐसा हमारा समाज हो।
भूखा-नंगा न कोई इंसान हो
सबकी रोजी-रोटी का इंतजाम हो
ऐसा हमारा समाज हो।
रूढ़ियों का काम तमाम हो
स्वस्थ-सुखी हर इंसान हो
ऐसा हमारा समाज हो।