हम सब एक हैं
हम सब एक हैं
क्या मजहब है पानी का,
है किस जाति की ये हवा,
क्या धर्म है अम्बर का,
है किस संप्रदाय की ये धरा,
क्या समुदाय है वृक्षों का,
है किस वर्ग के पशु-पक्षी,
क्या कुटुंब है पर्वत का,
है किस पंथ की ये नदियाँ,
क्या गोत्र है प्रकाश का,
है किस वंश की ये निशा,
क्या वर्ण इन ऋतुओ का,
है किस कुल की चार दिशा,
न करुणा बंधी है एक से,
न ईर्ष्या पर है एकाधिकार,
स्नेह सभी में पोषित है,
है हृदय में क्रोध समान,
पहले तो इन्सान बँटा,
फिर बँटा पूरा समाज,
ईश्वर को भी बाँट दिए,
जो है जीवन का आधार।।