हम सब एक हैं
हम सब एक हैं
रूप अलग है,रंग अलग है,अलग अलग है भाषा
अपनी अपनी संस्कृति है,है अपनी परिभाषा
कोई बसता गांव में तो कोई शहर का निवासी
कोई सभ्य समाज का हिस्सा तो कोई है आदिवासी
भिन्न भिन्न है जात-पात और भिन्न भिन्न हैं ईश्वर
पर शरीर है एक सभी का,जो होता है नश्वर
खान पान भी भिन्न हैं,अलग अलग हैं वाणी
पर फिर भी प्यास लगने पर पीतें सब हैं पानी
इतने अंतर होते हुए भी कोई नहीं पराया है
प्रेम,मित्रता और अपनेपन ने द्वेष को हराया है
अपनी इन पंक्तियों में मैं यही समझा रहा हूँ
"हम सब एक हैं" यह भाव दर्शा रहा हूँ
