हम बंटते
हम बंटते
दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है!
हम सदा बँटे रूप में रहे है, संसार सागर के हर इलाक़ों में,
बौद्धिक सामाजिक नेतृत्व या राजा अपनी व्यवस्थाओं को
बेहतर बनाने निपुणता बनाने बाँटता रहा है और हम बंटते रहे हैं!
एक बार फिर सामाजिक चेतना राजनीतिक मंच से आयी नारी किसान गरीब और …॥
पिछले धर्म जाति को भी समाहित कर गये और इन नये सम्बोधनों में रहे
बड़ी आबादी के बड़े वोट बैंक को भी आकृष्ट कर लिया॥
ये है राजनीतिक मंच की बाज़ीगरी , शायद देश हित में साबित भी हो,
एक गुणात्मक परिधि पर लाने वाला कर्मी मन विचारे तो क्या हो॥
एक माला में वो सब मोती आ जाये , राष्ट्रीयता की ओर ले जा रहे नेतृत्व को बल मिले॥
पहिले कुछ बने, दुनिया पर छाये तब सोचोगे कि
कुछ अच्छा हुआ या कम अच्छा!
परिवर्तन हर वक्त की परिभाषा है॥
मिज़ाज लोगों के बदलते हैं, देशीय भूमि के भी बदलने माँगते हैं॥