हकीकत
हकीकत
जब भी मैं समझता हूँ
बड़ा हो गया हूँ
अदना आदमी से
खुदा हो गया हूँ।
तो इतिहास उठा लेता हूँ
ये भ्रम खुद-ब-खुद टूट जाता है
मौत रूपी दर्पण में
सत्य का प्रतिबिम्ब दिख जाता है।
मिट्टी में मिल गए
जितने भी थे धुरंधर
क्या हलाकू-चंगेज
क्या पोरस-सिकंदर।
जिन्होंने कायम की थी
पूरी दुनिया में हुकूमत
कहीं नजर आती नहीं
आज उनकी गुरबत।
तो ऐ महावीर तुझे
घमंड किस बात का !
दुनिया-ए-फ़ानी में
भला तेरी औकात क्या ?
