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Mahavir Uttranchali

Abstract

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Mahavir Uttranchali

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हकीकत

हकीकत

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जब भी मैं समझता हूँ

बड़ा हो गया हूँ

अदना आदमी से

खुदा हो गया हूँ।


तो इतिहास उठा लेता हूँ

ये भ्रम खुद-ब-खुद टूट जाता है

मौत रूपी दर्पण में

सत्य का प्रतिबिम्ब दिख जाता है।


मिट्टी में मिल गए

जितने भी थे धुरंधर

क्या हलाकू-चंगेज

क्या पोरस-सिकंदर।


जिन्होंने कायम की थी

पूरी दुनिया में हुकूमत

कहीं नजर आती नहीं

आज उनकी गुरबत।


तो ऐ महावीर तुझे

घमंड किस बात का !

दुनिया-ए-फ़ानी में

भला तेरी औकात क्या ?


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