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हिन्दुस्तान

हिन्दुस्तान

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मुम्बई मेरी आँखें और दिल्ली मेरा दिल;

कलकत्ता मेरी ज़ुल्फ़ें लखनऊ गाल का तिल;

हिंदुस्तान हूँ मैं, हिंदुस्तान हूँ मैं।


ग़ैरों का क्या ज़िक्र करूँ मैं अपनो ने ही लूटा;

मेरी आँख से आंसू ढलके दिल का दर्पण टुटा;

ज़ख्म मिले हैं जीवन में इतने मेरा हसरा टूटा;

मधुबन मेरा जीवन और मुरली मेरी ताल;

मेरा दुख है ये सब के लिए पैग़ाम;

खुद बेजान हूँ मैं, हिंदुस्तान हूँ मैं।


क्या तो लोगों ने समझा है राजनीति को धंधा;

करके घोटाले कर लेते हैं अपना दामन गंदा;

डाल रखे हैं, धर्म की गर्दन पे नफरत का फंदा;

रस्तों की कीमत पर बिकते हैं मज़हब;

डाकू बन कर मुझ को सब लूट रहे हैं अब;

एक दुकान हूँ मैं, हिंदुस्तान हूँ मैं।


आज़ादी के पहले यहां पर सब थे भाई-भाईच;

आज़ादी के आते ही नफ़रत कि अंधी छाई;

फ़िरक़ा परस्ती के नारों न अबके आग लगाई;

टूटे मेरे सपने और टूटे मेरे ख्वाब;

मुझ को तो डसते हैं ये दिल्ली के सियासी नाग;

परेशान हूँ मैं, हिंदुस्तान हूँ मैं।


पहले सुहानी रात यहां थी, दिन था प्यार-प्यार;

कल तक मेरे सर पर था फूलों वाला ताज;

कुछ लोगों ने मेरा ये हाल किया है आज;

रेगिस्तान हूँ मैं परेशान हूँ मैं;

हिंदुस्तान हूँ मैं, हिन्दुस्तान हूँ मैं।


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