हिंदी का लाल
हिंदी का लाल
मैं गुनगुनाता हिंदी में,हिंदी को माँ बतलाता हूँ,
मैं लाल हूँ हिंदी भाषा का,हिंदी से जाना जाता हूँ।
हिंदी ने हिंदुस्तान बुना,फिर यही देश की शान बनी,
सरगम बनी सुरों की हिंदी,तानपुरे की तान बनी।
गीत इसी के गाकर के,विचलित मन बहलाता हूँ।
मैं लाल हूँ हिंदी भाषा का,हिंदी से जाना जाता हूँ।
तुलसी,सूर,कबीर,जायसी,हिंदी की संतान बने,
मजहब की बेड़ी तोड़-छिटक,कृष्ण-भक्त रसखान बने।
भारत-इंदु हरिश्चंद्र के आगे शीश नवाता हूँ।
मैं लाल हूँ हिंदी भाषा का,हिंदी से जाना जाता हूँ।
हीरे तरासे हिंदी ने,प्रेमचन्द मतवाले से,
दिनकर बन दिनकर जी निकले,महादेवी,पंत,निराले से।
हरिवंश बुलाएं मधुशाला,आओ मधु का पान कराता हूँ।
मैं लाल हूँ हिंदी भाषा का,हिंदी से जाना जाता हूँ।
ये पावन भाषा भारत की,अमृत सा पान कराती है,
शान हिमालय से भी ऊँची,गंगा सा स्नान कराती है।
मैं तिनका हूँ,इस बरगद को,गौरव से लिखता जाता हूँ।
मैं लाल हूँ हिंदी भाषा का,हिंदी से जाना जाता हूँ।
फ़ैशन के घूँघट के पीछे,इज्जत की बिंदी भूल रहे,
मोह विदेशी भाषा का,हम अपनी हिंदी भूल रहे।
घट-घट में अलख जगाने को,गौरव का दीप जलाता हूँ।
मैं लाल हूँ हिंदी भाषा का,हिंदी से जाना जाता हूँ।