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Dr. Anuradha Jain

Abstract

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Dr. Anuradha Jain

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हे करुणाकर

हे करुणाकर

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हे करुणाकर!

करुणा कर

क्षमा का दान मांगती

मानवता, चर अचर

हे करुणाकर!

करुणा कर

क्या करेंगे पहुंचकर

हम चांद - तारों पर

भयभीत स्वयं कैद होकर

भय एक कृमि का मानव मात्र पर

हे करुणाकर!

करुणा कर



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