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विजय बागची

Abstract

4.5  

विजय बागची

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हे जननी जनयित्री नमो नमः

हे जननी जनयित्री नमो नमः

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हे जननी जनयित्री नमो नमः

हे सृष्टि कार्ययित्री नमो नमः

हे स्नेह दायिनी नमो नमः

हे जन कल्याणी नमो नमः


एक हि  ईश  साक्षात  हमारे।

सुमिरन करि जब मात पुकारे


मन  निर्मल  तन तारण  होई।

विपद विपत्ति निज कारन खोई


सुफल होवहि कर्म के कणकण।

मातृ आशीष पा के छण छण


कोउ नहीं  उन सा  अधिकारी।

चलि आते प्रभु मात पुकारी


कोउ कहिं जो जननी से रूठा।

करि सत्कर्म रहा पुण्य अछूता


मातृ बंदना  परम् सुख लावै।

यश संमृद्धि  कीर्ति  बिसरावै


मात करै घरि घरि उजियारा।

मात बिना जग जग अँधियारा


मात ही हैं स्वर्गति के करता।

मात ही सर्व  दुःसाध्य हरता


मात ही कष्टों  के अवमोचन।

मात ही सत् देवी मम् लोचन।


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