हाथों की गलियाँ
हाथों की गलियाँ
अपना लेखा मेहनत है
भाग्य के भरोसे क्यों रहे?
हाथ कभी क्यों फैलाए?
हम हाथ कभी क्यों जोड़े?
हाथों की गलियाँ तंग रही
नसीब कहां हम ढूँढेंगे?
मिट्टी गारा उठाए सही,
हीरा कोयले से पाएँगे।
कल नसीब हम बदलेंगे ,
हाथों पर कालिख ही सही
हम मेहनत करने वाले हैं ,
आज भले यह तंग सही।
