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Abhishek Singh

Abstract

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Abhishek Singh

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हार न मानी क़िस्मत से!

हार न मानी क़िस्मत से!

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सपने देखना ही छोड़ दिया,

जबसे सपना टूटता रहा।

टूटे सपनों को जोड़-जोड़,

नई ज़िंदगी जीता रहा। 

हार न मानी क़िस्मत से,

बार-बार देखता रहा। 

हसर जो भी हो ज़िंदगी का,

मैं न डरा जीता रहा। 

सपने टूटता रहा,

दिल बैठता रहा,

और मैं हारता रहा।

हार न मानी क़िस्मत से 

मैं देखता रहा,मैं देखता रहा।


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