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हाँ मैं वहीं हूँ

हाँ मैं वहीं हूँ

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दोस्तों को बताने से भी डरता हूँ

बर्दाश्त न हो पाएगी बुराई तुम्हारी।


आंसुओं को निकलने से रोकता हूँ

कहीं ये बददुआ न बन जाए तुम्हारी।


दूर से राहें बदल लेता हूँ 

कहीं फिर से तुम्हें याद न आ जाए मेरी।


सोचता हूँ उस पुरानी डायरी को जला दूँ

जिसमे कैद है अनगिनत यादें हमारी।


फिर उसे जलाकर भी क्या उखाड़ लूँ

जब कि मेरे रूह में बसी है एक एक बात तुम्हारी।


ज़िदगी आज भी वैसी ही है

मैं वहीं हूँ, बस तुम नहीं हो अब मेरी।


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