हाल ए दिल
हाल ए दिल
क्या गीत ग़ज़ल दिल से गाऊॅं
क्या तुम्हें सुनाएं हाल-ए-दिल
वो ही कसमें वो वादे सब कुछ
हर बात पुरानी हाल-ए-दिल।
ख़ामोश पड़ा वो अल्हड़पन
सिंसक रहा है हर बचपन
वो ही तन और वो ही मन
क्या कहें जवानी हाल-ए-दिल।
वो नील गगन वो घर आंगन
दिन वही यहां हर रात वही
रुत वही हसीं, लम्हात वही
पर घुटन बहुत ऐ हाल-ए-दिल।
हर कलियों की सौगात वही
हर महफ़िल की बारात वही
भंवरों में गुंजित राग वही
पर आह भरा रे, हाल-ए-दिल।
कारवां लुटा है हसरत का
दम टूट रहा हर हसरत का
है राज दफ्न दिल के अंदर
चुपचाप खड़ा ऐ हाल-ए-दिल।
हद कहां तलक है दर्द-ए-दिल
जड़ गया कहां तक है दलदल
आसमां वही है जमीं वही
ग़मजदा बहुत है हाल-ए-दिल।
