गज़ल
गज़ल
प्यार ज्यादा नही ज़रा दे दो
ज़ख्म फिर कोई तुम हरा दे दो
प्यासे हैं एक अरसे से यारा
अपने आँखों का मयकदा दे दो
तपते सहरा पे चल रहा हूँ मैं
अपने ज़ुल्फ़ों की ये घटा दे दो
दूर तो कर दिया है नज़रों से
कुछ दवा दो या दुआ दे दो
दिल संभल जाए अब ये मेरा
भी वो मुहब्बत का फलसफ़ा दे दो
ढूँढता फिर रहा हूँ मैं जिस को
उस खुशी को मेरा पता दे दो
दर्द को ढाल अपने शेरों में
इस गज़ल में वो काफिया दे दो
ढल रही साँसें ज़िन्दगी की
अब जीने का कुछ तो हौसला दे दो