गर्व से हूँ- एल जी बी टी क्यू
गर्व से हूँ- एल जी बी टी क्यू
ना कविता, ना कहानी बतायी है,
उसने एक सच्चाई बतलायी है।
करवाना चाहता है रूबरू सच्चाई से,
हटाना चाहता है बैर दिलो से।
मत मानो तुम मुझको अजीब,
रहता हूँ मैं तुम लोगो के बीच।
मेरा भी है अपना नाम,
क्यूँ करते हो तुम मुझको बदनाम।
किन्नर, हिजड़े, छक्के जैसा नाम दिया है,
मैने उनको स्वीकार किया है।
ना चाहिए मुझे किसी का सहारा,
बनना है मुझको सबका प्यारा।
चाहे रेड हुई तीन सौ सत्तर की धारा,
फिर भी ना बन पाया किसी का प्यारा।
हर पल हर जगह मुझको ठुकराया,
ताली मारना मेरा स्वभाव बताया।
अब बदल रही है दुनिया सारी,
अब आएगी मेरी भी बारी।
ना मागूंगा अब मैं भीख,
रहूँगा इज़्ज़त से सब के बीच।
अपनी प्रतिभा जग को दिखाऊँगा,
अपनी एक पहचान बनाऊँगा।
अब मैं अपना नाम बनाऊँगा,
पूरे जग से तालियाँ बजवाऊँगा।
अब ना रोयेगी, अब ना झुकेगी मेरी रूह।
अब गर्व से कहूँगा, " मै हूँ एल जी बी टी क्यू"।