ग़ज़ल
ग़ज़ल
कोई रूठे ना मुझसे, मैं ये कोशिश करता हूं,
सबसे मिल - झूल के ही, मैं हरदम रहता हूं।
मुख में मिसिरी और स्नेह रखकर दिल में,
अपनों से और गैरों से, मैं रिश्ते रखता हूं।
न कुछ साथ लाए थे, न साथ कुछ ले जाएंगे,
फिर घमंड किस बात का, मैं सबसे पूछता हूं।
कर्म कीजिए ऐसे कि याद करें ये दुनियावाले,
कीजिए न गर्व कभी भी, मैं सबसे कहता हूं।
दु:खी कोई देखूं तो मनवा मचलता है मेरा,
देकर मुस्कान उसको, मैं खुश रहता हूं।
बनकर हमदर्द, कीजिए भलाई के काम,
ये ही सोच अपने मन में हरदम रखता हूं।