मानवीय मूल्यों की माला - 2
मानवीय मूल्यों की माला - 2
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आओ मुस्कुराएं ,आओ मुस्कुराएं ,
ग़मो को छुपाकर , खुशियां लुटाएं ।
ग़म और खुशी तो है आनी जानी ,
क्यूं ऐसी बातों से हम घबराएं ।
रोने धोने से ग़म , कभी कम नहीं होते ,
लब पे रखकर मुस्कान , हंसें और हंसाएं ।
दु:ख में साथी , नहीं है कोई भी बनता ,
क्यूं किसी की कोई झूठी आस लगाएं ।
होता है जग में दु:ख सुख का आवाग़मन ,
दु: खों पर सुखों की कोई मर्हम लगाएं ।
मालिक का तोहफा मानकर दुखों को ,
आओ हंसकर इन्हें गले से लगाएं ।