गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न
Abstract
मापनी-
(2122 212 2,2122 212)
याद माॅं की आ रही है, नीर नैनों से झरे ।
यातना मॉं को मिले जो, पाप से ही नित मरे ।।
बालपन का ध्यान करके, फूल प्यारा ही खिले ।
मात चरणों में मुझे तो ,प्रीत आकर खुद मिले ।।
रज रज बनैं अब...
माॅं
सिर्फ तुम
देशप्रेम-पंचच...
लक्ष्मीबाई
मॉं काली स्तु...
देशप्रेम -पंच...
देश की लेखनी....
दुनिया का सबस...
मनमोहन की बजत...
विविध है वेश भूषा पर.. अपना भारत एक..! विविध है वेश भूषा पर.. अपना भारत एक..!
होंठों पर मुस्कान, पर दिल किसी भंवर में डूब रहा .... होंठों पर मुस्कान, पर दिल किसी भंवर में डूब रहा ....
जा हमनें खुशियाँ दे दी तुझको अपने इश्क़ के नज़राने में। जा हमनें खुशियाँ दे दी तुझको अपने इश्क़ के नज़राने में।
तुम्हारे साथ किसी की नौकरी का कॉन्ट्रैक्ट ना आगे बढ़े शायद... तुम्हारे साथ किसी की नौकरी का कॉन्ट्रैक्ट ना आगे बढ़े शायद...
पर हम सब मिल कर अपने वतन को एक मुकम्मल हिंदुस्तान करेंगें पर हम सब मिल कर अपने वतन को एक मुकम्मल हिंदुस्तान करेंगें
भीड़ में अक्सर ही उनको अपने से गैर बनते देखा है। भीड़ में अक्सर ही उनको अपने से गैर बनते देखा है।
रिमझिम रिमझिम पड़ती है बूँदें जब, तन मन भींगता है न जाने कैसे कब। रिमझिम रिमझिम पड़ती है बूँदें जब, तन मन भींगता है न जाने कैसे कब।
कुछ पंछी मधुर कूजते थे भँवरे फूलों पर झूले थे कुछ पंछी मधुर कूजते थे भँवरे फूलों पर झूले थे
एक ही सूरज के ताप का वसुधा पर, विविध मौसम में भिन्न होता अहसास। एक ही सूरज के ताप का वसुधा पर, विविध मौसम में भिन्न होता अहसास।
काली अँधेरी रात का घना साया देखो मिटेगा, नाउम्मीदी की कालिमा मन से है जरूर छंटेगा। काली अँधेरी रात का घना साया देखो मिटेगा, नाउम्मीदी की कालिमा मन से है जरूर छं...
फुटपाथ की नंगी ज़मीन पर हवाओं में घुली सिहरन से बेसुध। फुटपाथ की नंगी ज़मीन पर हवाओं में घुली सिहरन से बेसुध।
पर्वतों को हिलाने का हुनर रखती है वो मुश्किल वक्त में भी कदम डगमगाते नहीं पर्वतों को हिलाने का हुनर रखती है वो मुश्किल वक्त में भी कदम डगमगाते नहीं
दर्द कितना भी गहरा क्यों न हो जीवन में, उसको छिपा कर मुस्कुराहट सजा लूँ होंठों पर। दर्द कितना भी गहरा क्यों न हो जीवन में, उसको छिपा कर मुस्कुराहट सजा लूँ होंठो...
दौलत के चक्कर में देखो इंसान को, स्वयं को ही कैसे-कैसे खेल खिलाए हैं। दौलत के चक्कर में देखो इंसान को, स्वयं को ही कैसे-कैसे खेल खिलाए हैं।
अन्याय विरुद्ध खड़ा होना धर्म चरित्र हो जीवन में, अन्याय विरुद्ध खड़ा होना धर्म चरित्र हो जीवन में,
कितना मुखौटा रखूँ और किस किस काम के लिए। कितना मुखौटा रखूँ और किस किस काम के लिए।
उम्र की ढलान पर टटोलती हूं, राख को उम्र की ढलान पर टटोलती हूं, राख को
तुमसे तो अच्छी है मेरी परछाई जो हमेशा साथ चलती है। दिले दोस्त जैसी है मेरी तन्हाई। तुमसे तो अच्छी है मेरी परछाई जो हमेशा साथ चलती है। दिले दोस्त जैसी है मेरी तन...
सिखा कर इन पद चिन्हों से, कितना हमें प्रेम दिया। सिखा कर इन पद चिन्हों से, कितना हमें प्रेम दिया।
पल भर में दो और दो पांच हो गए हैं। पल भर में दो और दो पांच हो गए हैं।