घर की याद
घर की याद
हमने आजाद होने का ठाना,
अब घर से बहुत दूर है जाना,
अपनी उमंग से एक इमारत है बनाना,
सब ने बहुत समझाया पर हमने कहा माना।।
आजादी के कुछ पल बहुत हसीन रहे,
घर के बाहर की जिंदगी खूबसूरत रही,
अब घर की चारदीवारी नहीं पहुंची इमारत हमें लुभाती रही,
अपनों से भी प्यारे दोस्तों का साथ रहा।।
जब आंखें खुली तो हम बहुत दूर थे,
अब वह उसी इमारत हमें नहीं लुभाती,
जब खुद को अकेला पाया तो एहसास हुआ,
अब आजादी नहीं हमें घुटन का आभास हुआ।।
जब छुट्टियां आती है हमें घर की याद सताती है,
अब हमें ऊंची इमारत नहीं घर की चारदीवारी लुभाती है,
अब घर की याद आती है।।
अब घर की याद आती है।।
