STORYMIRROR

Ashok Goyal

Abstract

3  

Ashok Goyal

Abstract

ग़ज़ल :-

ग़ज़ल :-

1 min
249

यूँ रही बेख़ुदी, क्या ख़बर क्या हुआ

तू नहीं हमसफ़र तो ,सफ़र क्या हुआ।


जिस्म पर क्यों तिरे है क़बा धूप की

छाँव देता रहा वो शजर क्या हुआ।


चल दिया जो मुझे राह में छोड़ कर

वो मिरा हमनवा, हमसफ़र क्या हुआ।


ज़ख़्म इतने दिए ज़िन्दगी ने मुझे

वक़्त से मैं ज़रा, बेख़बर क्या हुआ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract