ग़म तो अपनी ज़िन्दगी...
ग़म तो अपनी ज़िन्दगी...
ग़म तो अपनी ज़िन्दगी में भी कम नहीं,
फिर भी तुम्हारा ग़म बाँटने आया था।
सोचा दो पल बातें कर लें मिलकर,
तुम्हारी टेंशन कम करने आया था।
तुम्हारे दिल को हथियाना मक़सद नहीं,
पर कोने में ठौर माँगने आया था।
ग़ैर भी हो सकता है कभी अपना,
मैं तुम्हें यही समझाने आया था।
आवाज़ देना जब भी हो जरूरत,
बस इतना ही बताने आया था।

