हमारी भाषा की कक्षा
हमारी भाषा की कक्षा
हमारे टीचर जब भी कक्षा में आते हैं ,
बोर्ड पर छोटे-छोटे कई चित्र बनाते हैं।
बहुत ऊँची और स्पष्ट आवाज़ में फिर वे ,
इन चित्रों के नाम बड़े विचित्र बताते हैं।
दो-चार चित्र होते तो शायद याद भी हो जाते
एक साथ पचासों चित्रों के नाम रटवाते हैं।
हर रोज़ वही चित्र और उनके नाम पहचानना,
एक -एक नाम को पचासों बार कहलवाते हैं।
रटने और अभ्यास में फर्क कोई मुझे बताए ,
काम वही पर उसके नाम जरूर बदल जाते हैं।
वर्णमाला और बारहखड़ी नामक चिड़ियों को
हमारे सिर के ऊपर कई कई बार उड़वाते हैं।
और जब हम थक जाते हैं दुहरा -दुहराकर ,
फिर उसे ही पचासों बार हमसे लिखवाते हैं।
अब जाकर मेरी समझ में आ रहा है कि ,
मेरे कई दोस्त स्कूल क्यों छोड़ जाते हैं।
