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Arti pandey Gyan Pragya

Abstract

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Arti pandey Gyan Pragya

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गौरैया

गौरैया

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गौरैया जहाँ रहती है करती है सुवासित

भर देती है अपनापन का अहसास


नीम का पेड़ उसे बहुत भाता है

उसके पुरखों की शायद वसीयत है

जो कही कही निशानी के तौर पर दिखती है


गौरैया जब मिट्टी के आँगन में आती

उसके चहचहाने से आँगन भर जाता


गर्मी की दोपहरी काटे नही कटती आज

सुनी सी लगती हर एक आवाज़


हम भी तब दोपहरी का इन्तजार करते

कब गौरैया एक एक तिनका से बनायेगी अपना घोंसला


चावल के दाने पर सब चाहती थी अपना अधिकार

मेरे आँगन का घड़ा तो जैसे पनघट था उनके लिए


सुबह चार बजे जगाने की आदत थी उनको

क्योंकि वह गौरैया थी


अब तो सब बदल गया

गौरैया तो बहुत दुर चली गई

प्रकृति के पास



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