गांव की दुर्दशा
गांव की दुर्दशा
गांवों में कुंआ, पेड़ों में सुआ, बेलों पर जुॅआ,
अब दिखाई नहीं देत है।
पंप सैट लग गये, पेड़ सारे कट गये,
पशुधन बर्बाद हुआ,
ऊसर भये खेत है।
कर्ज में किसान, गिरवी मकान,
बाखर की शान अब दिखाई नहीं देत है।
चौपालें खाली,गॉव में दो पाली,
मन्दिर की रामधुन सुनाई नहीं देत है।
त्यौहार फीके भये, घर-घर के भजन गये,
मौड़ी-मौड़ा ढींठ भये, तुरत उत्तर देत है।
जिम्मेवार कौन है, समझदार मौन है,
झूठे विकास नाम पर, बर्बाद किये देते हैं।