एक सवाल
एक सवाल
कई बार मैंने खुद से एक सवाल किया,
पर अंतर्मन ने मेरे कोई जवाब न दिया।
फिर सोचा आपसे ही पूछ लेती हूं, आप कोई और तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
हर सुबह उठती हूं एक नई तमन्ना के साथ,
ढूंढती हूं एक मंजिल, ढूंढती हूं एक नई बात।
जिसकी तलाश है मुझे, कहीं यह वही भोर तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
अनजानी सी चहल पहल होती है मन में,
कभी व्याकुलता तो कभी निराशा हर कण में।
सब कुछ तो है मेरे पास, फिर भी मैं भावविभोर तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
इतनी सी उम्र में देखी जीवन की यह तस्वीर भी,
चुप और बेबस हूं मैं, रूठी हुई तकदीर भी।
डरती हूं इस खामोशी से, कहीं यह आने वाला शोर तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
सच मान ली यह बात, हर शख्स यहां अकेला है,
मिलते बिछड़ते हैं लोग, ज़िंदगी एक मेला है।
डरती हूं अकेलेपन से, पर वक्त पर किसी का ज़ोर तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
हर कोई संभलने की बात करता है,
जब संभालना चाहें, तो ज़माना फिर गिरा देता है।
जो असली चेहरा है जिंदगी का, कहीं मैं उस ओर तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
भगवान है क्या, विश्वास का दूसरा नाम है।
अभी नहीं सुना उसने, उसे भी दूसरे काम है।
बीच भंवर में है कश्ती, यह मंजिल वाला छोर तो नहीं,
मेरे अपने हैं आप!
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।
कहां के लिए चली थी, कहां जा रही हूं?
जो कुछ करना चाहती हूं, क्यों कर नही पा रही हूं?
शायद चलते रहना ही होगा हरदम, रुकने के लिए कोई ठौर तो नहीं।
मेरे अपने हैं आप !
बताइए कहीं मैं कमज़ोर तो नहीं।