एक शाम वक़्त के नाम
एक शाम वक़्त के नाम
कई सुबह कई शामें गुज़रीं
वक़्त के कदम कभी न रुके
एक पल में सदियाँ बदल गयीं
कई सदियाँ एक पल में सिमटे
इस पहेली में गुम यह सोचा
ज़रा फुर्सत से बैठें
वक़्त को मुट्ठी में थाम
उससे दो बातें करें
हमने कहा,
“आओ, ज़रा बैठो
कुछ किस्से हमें भी सुनाओ
अनकहे अनसुने कुछ राज़
हमें भी बताओ..."
हमने कहा,
“आओ, ज़रा ठहरो
कुछ घड़ियाँ हमारे संग बिताओ
अनकहे अनसुने कुछ राज़
हमें भी बताओ..."
गुज़ारिश यह सुन
वह करीब आ बैठा
नन्हे बालक - सी उसकी छवि देख
मन ख़ुशी से उमड़ उठा
उसका चेहरा मानो
सृष्टि की परिभाषा
उसकी आँखों में जैसे
हज़ारों दिलों की आशा
पलक झपकते भर में
कई लाखों वर्ष पिघल गए
एक - एक कर जब वक़्त के चेहरे से
बीते कल के नकाब जल गए
एक शाम जो की वक़्त के नाम
ज़िन्दगी ही बेपर्दा हो गयी
कई हसरतें, कई ख्वाहिशें,
मानो सीने में ही दफन रह गयी
एक बात गौर से सुनना
गौर से समझना एक बात
यह रहस्य वक़्त की ज़ुबानी
न लगती सबके हाथ
वक़्त न तुम्हारा है
न तुम उस के
पर ज़िन्दगी उसी की है, यारों
जिसने लगाम पा ली वक़्त पे !