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Nikhil Kumar

Inspirational

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Nikhil Kumar

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एक राही

एक राही

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जिन्दगी रेतीली रेगिस्तान है

रास्ते अंधेरे सुनसान है

वक़्त फिसलता जा रहा है

उम्र ढलती जा रही है

राही को मंजिल का पता नहीं है

बस चन्द सांसे थामे चलता जा रहा है

कांटो भरे राहों पर चल रहा है

पैरों में उसके ज़ख्म बेहिसाब है

तूफानों में भी थमता नहीं है वो

उसके अंतर्मन में कोई जलता चिराग है

इस जहां से उसे सिर्फ जख्म ही मिले हैं

फिर भी वो तुम्हारी तरह कभी कहता नहीं है

की जमाना बहुत ख़राब है।


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