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Sukanta Nayak

Abstract

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Sukanta Nayak

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एक प्यारा सा रिश्ता

एक प्यारा सा रिश्ता

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कितना प्यारा है ये रिश्ता

ना कोई पाने की चाह ना कोई गिला सिकवा

प्यार और ममता की अनूठा मिसाल

सबसे अलग ईश्वर की बनाई अनमोल रिस्ता।


ईश्वर कण कण में बैठे हैं 

फिर भी दिखाई नहीं पड़ते

आंखें खुली रह जाती हैं

फिर भी सामने भगवान होते हुए

दिखाई नहीं पड़ते।


हर चीज़ की अहमियत पता चलती है

जब खुद की जान पे बन आती है

अपनों की याद तभी सताती है

जब झूठ मुखोटे पहने लोगों से धोका मिलता है।


अपने भी बेगाने हो जाते हैं

बस एक साथ रह जाती है

माँ का आँचल धूप में छाँव बन जाता है।


रब ने हम में प्राण भरे हैं 

और जरिया माँ को बनाया

इसलिए वो रूप है रब का

चाहे इंसान हो या हो कोई जानवर।


हो कितना भी साँप

या हो जहरीला

माँ होती अपने बच्चों के लिए

एक अनमोल रतन रब का।


अक्सर गलती होती इंसानों से

भूल जाते है माँ की ममता

लेकिन इतनी तो अकल होती है जानवरों में 

अपने पराये की समझ और माँ की ममता।


कर्ज चुका तो नही पाएंगे उस रब की

माँ की थोड़ी सी सेवा करदेना

जीवन में चाहे कुछ कर पाओ या नहीं

ममता का थोड़ा मान ही रख लेना।


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