एक लड़की
एक लड़की
एक लड़की है थोड़ी खोई सी,
एक ख्वाब के टूटने पर रोई सी
जानती है कि बस नींद से जगी है,
मानती नहीं कि ख्वाब में थी।
मासूमियत है ये उसकी कि
जान के भी अनजान है,
अक्सर खुशियों से मुतासिर रही है
अभी नए ग़म से परेशान है।
सोचने लगी है आजकल पहले से थोड़ा ज्यादा,
बात करने को शायद कोई सहेली नहीं है।
मेरी तो सुनती नहीं पर कोई बताये उसे,
तन्हा भले हो अभी, पर वो अकेली नही है।
और समझा पाओ उसे तो ये भी समझाना,
उसके होने से घर में कुछ अलग ही बात है।
घर भरा भरा सा लगता है,
वैसे ये मेरे निजी ख़यालात हैं।
पर उसकी हँसी से सबकुछ खिला खिला सा लगता है
उदासी में उसकी सबकुछ बिखरा हुआ सा लगता है,
वो जानती है सब पर मानने को तैयार नहीं,
वो नाराज़ हो तो फिर घर मे कहाँ किसी का दिल लगता है!
वो सोचती है वो दरख़्त से जुदा एक पत्ता है,
जो उड़ने को तैयार है...
वो मलंग है, आज़ाद है,
बस एक झोंके का इंतज़ार है।
जो हवा दे उसको,
दिशा दे उसको,
संग उड़ा के
पँख दे उसको।
पर झोंके कहाँ इतना लंबा ठहरते हैं,
कुछ दूर उड़के ज़मीं पर ही गिरते हैं।
शायद वो ख्वाब झोंके के गिरने से पहले ही टूटा था,
शायद इसीलिए उसके ज़हन में ये ख्याल झूठा था।
एक शदीद हसीन ख्वाब टूटने का ग़म था,
पर झोंके और पत्ते की यारी में भी कहाँ दम था।
मेरी तो सुनती नहीं पर कोई बताये उसे,
कि उसके सपने बड़े हैं,
उसकी हक़ीक़त बड़ी है,
वो किसी पेड़ से जुदा पत्ता नहीं...
वो किसी झोंके की मोहताज नहीं,
वो तो खुद में मुकम्मल इक तूफान है,
वो उधार के पंखों की परवाज़ नहीं।
ये मासूमियत ही तो है उसकी,
बस इतनी सी बात पर रोई थी
एक लड़की है, थोड़ी खोई सी।