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savitri garg

Abstract Drama

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savitri garg

Abstract Drama

एक कप कॉफी

एक कप कॉफी

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सुबह की सुनहरी धूप हो या, फिर हो ढ़लती हुई शाम का नजारा ।
ठंड की ठंडक भरी ठिठुरन हो, या फिर हो गर्मी की शाम का नजारा ।।
    बस एक कप कॉफ़ी की हो मांग, कॉफ़ी तो सबकी जान।
    कॉफ़ी तो है रंग जमाती सबमें मिलना सिखाती।।
बरसात का मौका हो, या फिर हो रिमझिम बूंदों की बौछार।
ठंड हवाओं का झोंका हो ,या फिर हो मन मोहक फूलों की बहार।।
         बस एक कप कॉफ़ी की हो मांग कॉफ़ी तो है सबकी जान।
         कॉफ़ी तो है रंग जमाती सब में मिलना सिखाती।।
पुरानी यादों का पिटारा हो ,या फिर हो छोटी- छोटी खुशियां की बात ।
यारों का याराना हो, या फिर हो यारों के संग मस्ती की हो कोई बात।।
       बस एक कप कॉफ़ी की हो मांग ,कॉफ़ी तो है सबकी जान ।
      कॉफ़ी तो है रंग जमाती सब में मिलना सिखाती।।
   प्यार में हो इजहार , या फिर हो प्यार में इनकार।
   किसी के आने का हो इंतज़ार ,या फिर आये किसी की याद।।
     एक कप कॉफ़ी की हो मांग कॉफ़ी तो है सबकी जान ।
     कॉफ़ी तो है रंग जमाती सब में मिलना सिखाती।।
आफिस का हो कोई काम, या फिर हो कोई हो चिंता की बात।
कोई परेशानी की हो बात या फिर हो कोई फुरसत की बात।।
        बस एक कप कॉफ़ी की हो मांग, कॉफ़ी तो है सबकी जान।
        कॉफ़ी तो है रंग जमाती सबमें मिलना सिखाती।।
           ।।बस एक कप कॉफ़ी ही काफी है।।


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