एक खत
एक खत
मेरे कमरे की मेज पर एक खत
रखा का रखा रह गया
कितना कुछ लिखा था
जो तुमसे नही कह सकती थी
मगर कहना चाहती थी
अपने सारे जज़्बात, एहसास उस खत में लिखे
सोचा था भेजूंगी किसी दिन तुम्हरे पाते पर
पता चला तुम हमें भूल कर किसी
गैर के हो गए
वो खत आज भी अधूरा रह गया
मेरी तरह।