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Ghanshyam Sharma

Abstract

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Ghanshyam Sharma

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एक कदम शेष

एक कदम शेष

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बस एक कदम ही शेष बचा था।


खूब ठोकरें खायीं रोया,

रोया रोकर मुंह को धोया,

धोया फिर से निकल पड़ा मैं,

निकल पड़ा था ज़िद पे अड़ा मैं,

जीत-जीत की माला रटता,

जीत-मंत्र मस्तिष्क-मचा था ।


बस एक कदम ही शेष बचा था।

बस एक कदम ही शेष बचा था।


हारा हारा हार गया फिर,

मारा मारा मार गया फिर,

दूर हुआ विश्वास जो तेरा,

जग में बचा नहीं कोई मेरा,

जीवन सब संघर्ष में बीता,

जीत की खातिर बड़ा नचा था।


बस एक कदम ही शेष बचा था।

बस एक कदम ही शेष बचा था।


धीरज खोकर मिला क्या तुझको ,

बोले 'धर्म' बता ये मुझको ,

मात-पिता, बहना, माँ-जाया,

क्या सबका कर्त्तव्य निभाया?

कुछ दिन और सहन कर लेता,

भाग्य तेरे कुछ और रचा था।


बस एक कदम ही शेष बचा था।

बस एक कदम ही शेष बचा था


जिसको सफलता है तू कहता,

जीवनभर जिसके पीछे रहता ,

कुछ दिन बाद वही मिलनी थी,

मुरझाई हर कली खिलनी थी,

जश्न मनाता, नाचता-गाता,

किंतु तुझे कुछ और जंचा था।


बस एक कदम ही शेष बचा था।

बस एक कदम ही शेष बचा था।


कृष्ण-राम स्वयं भाग्य-विधाता,

विपदाओं से रहा था नाता,

जंगल-जेल की खाक थी छानी,

किंतु कभी ना हार थी मानी,

संकट का हो पर्वत-सागर ,

सारा का सारा ही पचा था।


बस एक कदम ही शेष बचा था।

बस एक कदम ही शेष बचा था।


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