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DrNikesh Kumar

Tragedy

4  

DrNikesh Kumar

Tragedy

एक बर्फीली रात

एक बर्फीली रात

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बर्फीली रात का सन्नाटा,

है कोई ना आता-जाता,

दिल धड़क-धड़क,

हाय सूनी सड़क।


मैं निपट अकेला,

है दूर तबेला,

मस्ती में गाता मैं,

बस गुनगुनाता मैं।


अचानक गया ठिठक,

बढ़ी हृदय की धक - धक,

ओह यह काली परछाई,

डकवाक करता मेरे भाई।


मेरे अंदर से आवाज आई,

जरूर वनमानुष है भाई,

मुट्ठी को भींचा मैं,

सांसो को खींचा मैं।


वह बढ़ता आए मेरी तरफ,

और बढ़ती जाए मेरी तड़प,

भाग भी नहीं सकता मैं,

जीत भी नहीं सकता मैं।


निर्जीव बन गया था मैं,

कुछ नहीं कर सका था मैं,

तभी उठ खड़ी हुई परछाई,

अरे यह तो कोई आदमी है भाई,

मुझे देख करने लगा व्यायाम,

पर उड़ा दिए थे मेरे प्राण।


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