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DrNikesh Kumar

Abstract

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DrNikesh Kumar

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मेंढ़क का इश्क़

मेंढ़क का इश्क़

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वो छोटे - छोटे से मेंढ़क;

आज फिर से टर - टरा रहे हैं,

कहीं यह इशारा तो नहीं;

बारिश को करीब लाने का,

वो छोटे-छोटे बादल;

देख मेंढक मुस्कुरा रहे हैं,

कहीं यह इशारा तो नहीं;

मेंढक से इश्क जताने का ।।


जब मेंढक के इश्क में वेदना होगी,

उसके स्वर में करुणा होगी,

टरटर्राहट उसके आर्तनाद से उभरेगा,

तब बादल का दिल पसीजेगा ।।


इश्क परवान चढ़ जाएगा,

फिर बादल भी चिल्लाएगा,

आकुल कंठ से गर्जना होगी,

मेंढक को अति वेदना होगी,

वह पंख निकाल उड़ना चाहेगा,

पर असफल रह जाएगा ।।


झिंगुरों से भी यह तकलीफ ना देखी जाएगी,

अविराम शहनाई बजाएगा,

मयूरा को नचवाएगा,

चमकती बिजली ; गरजते बादल,

टर -टराते मेंढक और साथ पूरी प्रकृति का दल,

सब डीजे की थाप लगाएंगे,

बारिश को पास बुलाएंगे ।।


पर, तब तक वह नहीं आता है,

जब तक मेंढक नहीं अकुलाता है,

व्यथित व व्याकुल कंठ से जब मेंढक गुब्बारे फूलाता है, बादल का दिल पिघल-पिघल बारिश की बुंदे बन जाता है,


दोनों के इस मधुर मिलन से धरती रमणीक हो जाती है,

नई फसल और नई उमंगे हर ओर खुशहाली लाती है।।


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