STORYMIRROR

DrNikesh Kumar

Abstract

4  

DrNikesh Kumar

Abstract

लोटे में नदी

लोटे में नदी

2 mins
454

जब भी पानी पीने को होता हूं,

दिखती है - लोटे में नदी,

जो कहती है,

सभ्यता की कथा व अपनी व्यथा,

हड़प्पा - सिंधु की नादानी व

मोहनजोदड़ो की कुर्बानी,

पहिए की दास्तां व जहाज की उड़ान,

तब से जब ना थे हम,

और अब तक जब नहीं है नदी


आवाज़ आती है लोटे से

हो तुम कौन ?

यूं झांक रहे मेरे घर में बन करके मौन !


कैसे कह दूं उसे कि -

हूं मैं हत्यारा उसका,

उसके वक्षस्थल का,

गोद में निश्छल गोता लगाते जीवों का,

पेड़ों पर कलरव करते पंछियों का,

एवं समस्त जैव - पर्यावरण का


फिर से आवाज़ कड़क हो जाती है,

अरे बताओ कौन ?

अबकी बार आ चुका है - लोटे में उफान,

चारों तरफ छा चुका है - सुनामी तूफान,

मानो लेकर रहेगी यह बदला अपना,

भूल ही जाओ अब हाइड्रल प्रोजेक्ट का सपना


न केवल देखा मैंने,

लोटे में नदी,

मैंने देखा,

हां जी हां मैंने देखा,

थाली में मछली !


मैं ज्यों ही कौर उठता हूं,

मछली जीवित हो जाती है,

उछलती है,

कूदती है व उत्पात मचाती है,

मुझे लगता है कि -

पकड़ लिया मैंने उसे,

कर दूंगा उदर के हवाले,

और लूंगा स्वाद उसका !


कि ठीक उसी क्षण -

फिसल मेरे हाथों से मछली,

हवा में तैरने लग जाती है,

अपना स्वरूप बढ़ाती है और

कोरोना बन जाती है,

फिर उछलती है,

कूदती है व उत्पात मचाती है


मैं अचरज में ही हूं कि

एक आवाज़ कौंध जाती है -

" अबे सुन बे पापी,

यह दुनिया क्या केवल,

तेरे बाप की,

जिसे चाहते मारते हो,


जिह्वा की स्वाद मिटाते हो,

यह जीवन क्या बस तेरा है,

इस पर कोई हक ना मेरा है,

मेरी हाय तुझे ना छोड़ेगी,

तुझे अंदर तक झकझोरेगी,

आखिर तू भू-शायी होगा,

COVID-१९ से धराशाई होगा "


जब गौतम - गांधी का नारा है,

अहिंसा ही धर्म हमारा है,

तो तूने क्यों विचारा है,

यह दुनिया बस तुम्हारी है ?


अचानक छाती गई खामोशी,

व लोटे से निकली नदी,

ओह, कहो !

यदि वह अलार्म ना बजता,

तो डूब ही गए थे हम,

बन ही गए थे कोरोना का ग्रास


किस्मत अच्छी,

कि बच गए हम,

किन्तु, ना बच पाओगे तुम,

क्योंकि समा चुकी है,

अब फिर से लोटे में नदी,

या तो सुधर जाओ,

या मिलकर कर लो खुदखुशी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract