एक भूली याद
एक भूली याद
एक भूली याद
एक बंद खिड़की सा राज़ हूँ मैं
दिल से निकली आवाज़ हूँ मैं।
बंदिशे हैं ज़िंदगी के खेल मैं
कहे ना सकु वोह फ़रियाद हूँ मैं
ढूंढ़ ना सकोगे मुझे
इन किताबो में कहीं
खोया हुआ अल्फ़ाज़ हूँ मैं।
महफ़िलों में ना ढूंढो मुझे
दिल में छुपा जज़्बात हूँ मैं
फितरत कुछ ऐसी मेरी।
अश्क-ए - तहज़ीब समजो अगर
अश्क सा बहता सैलाब हूँ मैं
बस अब तो एक भूली याद हूँ मैं।